केदारनाथ मंदिर: हिमालय की गोद में भगवान शिव का दिव्य धाम
हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों के बीच बसा केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Mandir) उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग ज़िले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भारत के प्रसिद्ध चार धामों (चार धाम यात्रा) में शामिल है। हर साल लाखों श्रद्धालु कठिन पर्वतीय मार्गों को पार कर भगवान केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचते हैं।

केदारनाथ मंदिर का इतिहास (Kedarnath Mandir History)
केदारनाथ मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, महायुद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की आराधना करना चाहते थे। लेकिन भगवान शिव उनसे रुष्ट होकर छिप गए और नंदी (बैल) के रूप में हिमालय में प्रकट हुए।
जब पांडवों ने उन्हें पहचान लिया, तो भगवान शिव ज़मीन में समा गए। उस समय उनका कूबड़ (हंप) भाग केदारनाथ में प्रकट हुआ, और बाकी शरीर के भाग पंच केदार के अन्य मंदिरों में — तुङ्नाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर, और कल्पेश्वर — में प्रकट हुए।
ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया और यही स्थान उनका समाधि स्थल भी है, जो मंदिर के पास स्थित है।
यद्यपि मन्दिर के निर्माण का ठीक से कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। किन्तु ऐसा विधित है कि इस मन्दिर का निर्माण महाभारत काल के बाद पाण्डवों के द्वारा किया गया । यह निर्विवाद सत्य है कि लगभग 80 फीट ऊँचे इस विशाल मन्दिर में वास्तुकला का सुन्दर प्रदर्शन है । मन्दिर में प्रयुक्त पत्थर स्थानीय हैं जो कि तराशे गये हैं एवं मन्दिर का स्वरूप चतुष्कोणात्मक है।
मृंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक वृहद् शिला के रूप में विद्यमान है । गर्भ-गृह के बाहर मां पार्वती जी की पाषाणमूर्ति है तथा सभामण्डप में पंच पांडव, श्री कृष्ण एवं मां कुन्ती जी की मूर्तियां हैं । मुख्य द्वार पर गणेश जी और श्री नन्दी जी की पाषाण मूर्तियाँ हैं । परिक्रमा पथ में अमृत कुण्ड तथा है | इसी पथ के पूर्व भाग पर भैरवनाथ जी की पाषाण मूर्ति है तथा लगभग 50 मीटर उत्तर-पश्चिम की ओर शंकराचार्य समाधि है जिसका वर्ष 2021 में शंकराचार्य की नई मूर्ति प्रतिस्थापित की गई है ।
मुख्य मन्दिर से लगभग 200 मीटर पूर्व की ओर केदार क्षेत्र के रक्षक भगवान भैरव जी की पाषाण मूर्ति एक नव्यशिला पर प्रतिष्ठित है । श्री केदारनाथ मन्दिर में भगवान के ज्योर्तिलिंग की पूजा अर्चना सभी यात्री स्वयं अपने हाथों से स्पर्श करके कर सकते हैं । यात्रियों की सहायता हेतु पूजा कराने के लिए आचार्य वेदपाठी नियुक्त हैं तथा भगवान की नित्य नियम पूजा हेतु वीरशैव जंगम सम्प्रदाय के पुजारी नियुक्त है। श्री केदारनाथ जी की पूजा शैव पद्धति से की जाती है ।
कालान्तर द्वापर-युग में महाभारत युद्ध के उपरान्त गोत्र हत्या के पाप से पाण्डव अत्यन्त दुःखी हुये और केदार क्षेत्र में भगवान शिव के दर्शनार्थ आये । भगवान शिव गोत्र-घाती पाण्डवों को प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देना चाहते थे अतएव वे मायामय महिष का रूप धारण कर केदार में विचरण करने लगे । पाण्डवो को बुद्धियोग से ज्ञात हो चला कि शंकर भगवान हैं तो पाण्डव महिष का पीछा मायावी महिष के रूप में यही रहने लगे । यह जानकर महिष रूपी शिव भूमिगत होने लगे तो पाण्डवों ने भगवान शिव की दौड़कर महिष रूप का पृष्ठ भाग पकड़ लिया और विनम्र प्रार्थना अराधना करने लगे । पाण्डवों की प्रार्थना को सुनकर भगवन शिव बहुत प्रसन्न हुए और महिष के पृष्ठ भाग के रूप में भगवान शंकर श्री केदारनाथ में भूमिगत हो गये। भगवान का श्रीमुख नेपाल में पशुपतिनाथ के रूप में प्रकट हुए । पांडवों द्वारा श्री केदारनाथ में भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना की गयी जिसके बाद वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुये और पाण्डवों ने ही भगवान श्री केदारनाथ जी के विशाल एवं भव्य मन्दिर का निर्माण किया। तब से भगवान शिव श्री केदारनाथ में निरन्तर वास करते हैं ।
श्री बदरीनाथ जी की यात्रा से पूर्व भगवान श्री केदारनाथ जी के पुण्य दर्शनों का महात्म्य है । सत्ययुग में इसी स्थान पर केदार नाम के एक राजा ने घोर तपस्या की थी, इस कारण से भी इस क्षेत्र को केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। केदार का शाब्दिक अर्थ दलदल होता है तथा भगवान शिव दल-दल भूमि के अधिपति भी हैं इसलिए भी दल- दल (केदार) के (नाथ) पति से केदारनाथ नाम पड़ा । महाभारत में इस भूमि में मन्दाकिनी, अलकनन्दा एवं सरस्वती बहने का उल्लेख भी मिलता है जो आज तक इस क्षेत्र में बह रही है । केदारनाथ में अनेक मुक्ति प्रदान करने वाले तीर्थ स्थान हैं । केदारनाथ मंदिर के चारों तरफ बहने वाली दुग्ध गंगा, मन्दाकिनी आदि देव नदियों के जल में स्नान करने से आयु बढती है । केदारनाथ के पश्चिम उत्तर दिशा में लगभग 8 किमी0 की दूरी पर वासुकी ताल है । यहां पर ब्रह्मकमल बहुत मात्रा में होते हैं इसके साथ ही इस क्षेत्र में गुग्गुल, जटामांशी अतीस, ममीरा, हत्थाजड़ी आदि जड़ी बूटियां प्राकृतिक रूप से उगती हैं ।
मंदिर की पूर्व दिशा में जहां पर एक गुफा है कहा जाता है कि पाण्डवों ने अन्तिम यज्ञ इसी स्थान पर किया था । श्री केदारनाथ जी के कपाट बैसाख मास में अक्षय तृतीय के पश्चात खुलते हैं तथा भैयादूज के दिन बन्द हो जाते हैं । शेष छः माह के लिए भगवान शिव की पूजा ऊखीमठ में होती है । ऊखीमठ में भगवान ओंकारेश्वर जी का विशाल एवं भव्य मन्दिर है यहां पर श्री पंचकेदारों में भगवान श्री मद्महेश्वर जी की शीतकालीन छः माह की पूजा भी यहीं पर होती है। केदारखण्ड तथा स्कन्दपुराण में केदार यात्रा का महत्व इस तरह वर्णित किया गया है कि श्री बदरीनाथ जी की यात्रा से पहले श्री केदारनाथ जी की यात्रा करनी चाहिये। जो भगवान श्री केदारनाथ का नाम स्मरण एवं शुभ संकल्प मन में लेता है वह मनुष्य अति पुण्यात्मा एवं धन्य हो जाता है और अपने पितरों की अनेक पीढियों का उद्धार कर भगवान की कृपा से साक्षात् शिवलोक का प्राप्त हो जाता है। जिस प्रकार पंचबदरी तीर्थों का अपना इतिहास एवं महात्म्य है उसी प्रकार पंच केदार तीर्थों का भी अपना विशेष महत्त्व है । इन स्थानों की प्राचीन काल से बहुत विशेषतायें रही हैं जिसका वर्णन स्वयं भगवान शिव पार्वती जी से करते हैं । वर्तमान में भी इन तीर्थ स्थानों की यात्रा एवं भगवान के पुण्य दर्शन करने मात्र से सारी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं ।
स्थान और प्राकृतिक सौंदर्य
केदारनाथ मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के किनारे बसा है और चारों ओर बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है।
मंदिर के आस-पास का वातावरण आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण है — एक ऐसा स्थान जहाँ पहुँचकर हर यात्री अपने भीतर की शांति को महसूस करता है।
केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला (Architecture)
केदारनाथ मंदिर प्राचीन पत्थर की विशाल दीवारों से बना हुआ है, जो सदियों से हिमालय की कठिन परिस्थितियों का सामना करता आ रहा है।
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मंदिर का गर्भगृह (Sanctum) भगवान शिव को समर्पित है, जहाँ शिवलिंग को श्री केदारेश्वर रूप में पूजा जाता है।
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मंदिर के सामने नंदी बैल की विशाल प्रतिमा विराजमान है।
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गर्भगृह के बाहर के मंडप में भगवान कृष्ण, पांडव और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
2013 की भीषण बाढ़ में आसपास का क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ था, परंतु मंदिर लगभग अक्षत (अछूता) रहा — जिसे भक्त भगवान शिव की दिव्य शक्ति का प्रमाण मानते हैं।
धार्मिक महत्व (Spiritual Significance)
केदारनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। यह मंदिर न केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है बल्कि पंच केदार और चार धाम यात्रा का भी प्रमुख केंद्र है।
यहाँ दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से केदारनाथ के दर्शन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
केदारनाथ मंदिर खुलने और बंद होने की तिथि 2025
भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ मंदिर साल में केवल 6 महीने (अप्रैल से नवंबर) तक ही खुला रहता है।
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खुलने की तिथि (Opening Date): लगभग 26 अप्रैल 2025 (अक्षय तृतीया)
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बंद होने की तिथि (Closing Date): लगभग 15 नवंबर 2025 (कार्तिक पूर्णिमा)
बंद होने के बाद भगवान केदारनाथ की पूजा उखीमठ में की जाती है।
केदारनाथ कैसे पहुँचे (How to Reach Kedarnath)
केदारनाथ तक पहुँचने के लिए सड़क, हवाई और रेल मार्गों का संयोजन करना पड़ता है।
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हवाई मार्ग (By Air):
नज़दीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (देहरादून) है, जो गौरीकुंड से लगभग 238 किमी दूर है। -
रेल मार्ग (By Train):
नज़दीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश या हरिद्वार है। -
सड़क मार्ग (By Road):
हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से नियमित बसें और टैक्सी सेवाएँ गौरीकुंड तक चलती हैं। -
ट्रेकिंग (Trekking):
गौरीकुंड से केदारनाथ तक लगभग 16 किलोमीटर का पैदल मार्ग है।
यात्रियों के लिए खच्चर, पालकी और हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।
केदारनाथ जाने का सबसे अच्छा समय (Best Time to Visit Kedarnath)
केदारनाथ की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच होता है।
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गर्मी (मई–जून): यात्रा के लिए आदर्श मौसम।
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बरसात (जुलाई–अगस्त): भारी वर्षा और भूस्खलन का खतरा।
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शरद ऋतु (सितंबर–अक्टूबर): शांत और सुहावना वातावरण।
रहने की व्यवस्था (Accommodation)
केदारनाथ में यात्रियों के लिए अनेक रहने की सुविधाएँ हैं —
GMVN गेस्ट हाउस, धर्मशालाएँ, आश्रम, और टेंट कैंपिंग साइट्स।
यात्रा सीजन में भीड़ अधिक होती है, इसलिए अग्रिम बुकिंग करना बेहतर रहता है।
आसपास के दर्शनीय स्थल (Nearby Places to Visit)
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भैरवनाथ मंदिर: केदारनाथ से 500 मीटर दूर, भगवान भैरव को समर्पित।
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गौरीकुंड: यात्रा का प्रारंभिक बिंदु, यहाँ गरम जल का कुंड और देवी गौरी का मंदिर है।
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गांधी सरोवर (चोराबाड़ी ताल): एक सुंदर झील, मंदिर से 3 किमी की दूरी पर।
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त्रियुगीनारायण मंदिर: जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था।
यात्रा के लिए उपयोगी सुझाव (Travel Tips)
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गर्म कपड़े और वर्षा-रोधी वस्त्र साथ रखें।
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स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और पहचान पत्र ज़रूर रखें।
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ऑनलाइन चार धाम यात्रा पंजीकरण कराएँ।
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पर्यावरण को स्वच्छ रखें और प्लास्टिक का उपयोग न करें।
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मौसम का पूर्वानुमान देखकर ही यात्रा शुरू करें।
आध्यात्मिक अनुभव
केदारनाथ की यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है।
जब बर्फ से घिरे पर्वतों के बीच “हर हर महादेव” की गूंज उठती है, तब हर भक्त का हृदय भक्ति और शांति से भर जाता है।
यह यात्रा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और विश्वास से कोई भी कठिनाई पार की जा सकती है।
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